करवा चौथ क्यों मनाया जाता है | करवा चौथ व्रत विधि | Karwa Chauth images


करवाचौथ का व्रत पत्नियां अपने पति की लम्बी उम्र के लिए रखती हैं । आइए आपको बताते हैं क्या है इसके पीछे की कहानी :

प्रथम कथा

महिलाओं के अखंड सौभाग्य का प्रतीक करवा चौथ व्रत की कथा कुछ इस प्रकार है- एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और उसकी बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने को कहा। इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर उसे अ‌र्घ्य देकर ही मैं आज भोजन करूंगी।

साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुख हुआ। साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम उन्हें अ‌र्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अ‌र्घ्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।

साहूकार की बेटी अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अ‌र्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार करवा चौथ का व्रत भंग करने के कारण विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में लग गया।

साहूकार की बेटी को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया।

इस प्रकार उस लड़की के श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत भगवान गणेश जी उसपर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया। उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया।

कहते हैं इस प्रकार यदि कोई मनुष्य छल-कपट, अहंकार, लोभ, लालच को त्याग कर श्रद्धा और भक्तिभाव पूर्वक चतुर्थी का व्रत को पूर्ण करता है, तो वह जीवन में सभी प्रकार के दुखों और क्लेशों से मुक्त होता है और सुखमय जीवन व्यतीत करता है।

व्रत की पौराणिक कथा

यह व्रत कार्तिक माह की चतुर्थी को मनाया जाता है, इसलिए इसे करवा चौथ कहते हैं। व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक द्विज नामक ब्राह्मण के सात बेटे व वीरावती नाम की एक कन्या थी। वीरावती ने पहली बार मायके में करवा चौथ का व्रत रखा। निर्जला व्रत होने के कारण वीरावती भूख के मारे परेशान हो रही थी तो उसके भाइयों से रहा न गया। उन्होंने नगर के बाहर वट के वृक्ष पर एक लालटेन जला दी व अपनी बहन को चंदा मामा को अ‌र्घ्य देने के लिए कहा।

वीरावती जैसे ही अ‌र्घ्य देकर भोजन करने के लिए बैठी तो पहले कौर में बाल निकला, दूसरे कौर में छींक आई। वहीं तीसरे कौर में ससुराल से बुलावा आ गया। वीरावती जैसे ही ससुराल पहुँची तो वहाँ पर उसका पति मृत्यु हो चुकी थी। पति को देखकर वीरावती विलाप करने लगी। तभी इंद्राणी आईं और वीरावती को बारह माह की चौथ व करवा चौथ का व्रत करने को कहा।

वीरावती ने पूर्ण श्रद्धाभक्ति से बारह माह की चौथ व करवा चौथ का व्रत रखा, जिसके प्रताप से उसके पति को पुन: जीवन मिल गया। अत: पति की दीर्घायु के लिए ही महिलाएं पुरातनकाल से करवा चौथ का व्रत करती चली आ रही हैं।


तृतीय कथा

एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गांव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। स्नान करते समय वहां एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्‍‌नी को पुकारने लगा।

उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्‍‌नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बांध दिया। मगर को बांधकर यमराज के यहां पहुंची और यमराज से कहने लगी- हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में ले जाओ।

यमराज बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अत: मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूंगी। सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।

चौथी कथा

एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए। इधर द्रोपदी बहुत परेशान थीं। उनकी कोई खबर न मिलने पर उन्होंने कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की। कृष्ण भगवान ने कहा- बहना, इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था।

पूजन कर चंद्रमा को अ‌र्घ्य देकर फिर भोजन ग्रहण किया जाता है। सोने, र्चदी या मिट्टी के करवे का आपस में आदान-प्रदान किया जाता है, जो आपसी प्रेम-भाव को बढ़ाता है। पूजन करने के बाद महिलाएं अपने सास-ससुर एवं बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेती हैं।

तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से कर सकती है।

करवाचौथ का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्थी को रखा जाता है । करवाचौथ वास्तविक में औरतों की मजबूर इच्छाशक्ति का प्रतीक है जो अपने पति की लम्बी उम्र के लिए पूरा दिन बिना कुछ खाए पीए व्रत करती है ।

यह त्यौहार विवाहित जोड़ी के बीच प्यार का प्रतीक है । करवाचौथ के दिन एक पुजारिन महिलाओं के समूह को कथा सुनाती है ।

रस्में :
विवाहित महिलाएं सूर्योदय होने से चन्द्रमा निकलने तक व्रत रखती है । महिलाएं सूर्योदय होने से पहले जो भोजन कहती हैं उसे सरगी कहते हैं । सरगी खाने के बाद महिलाएं पूरा दिन न कुछ खाती हैं न कुछ पीती हैं । इस दिन महिलाएं एकत्रित होकर हाथों पर मेहंदी लगाती हैं ।

करवा चौथ व्रत विधि


  • ब्रम्‍ह मुहूर्त में स्‍नान कर व्रत रखने का संकल्‍प लें और सास द्वारा भेजी गई सरगी खाएं। सामान्‍यत: सरगी के रूप में सास द्वारा मिठाई, फल, सेंवई, पूड़ी और साज-श्रंगार का समान दिया जाता है।
  • पूरा दिन उपवास रखें। उपवास अपनी क्षमतानुसार निर्जला अथवा जल युक्‍त अथवा फलाहार युक्‍त हो सकता है। हालांकि निर्जला व्रत सर्वोत्‍तम माना जाता है।
  • सभी कामों से निर्वत होकर अन्‍त में तैयार हो सोलह श्रृंगार करें। फिर एक बाजोट पर चौथा माता की तस्‍वीर या दीवार पर गेरू से चौथ माता का चित्र बनाये, धूप-दीप आदि कर पूजा-अर्चना करें तथा चौथ माता की कथा सुने। कई जगह कथा सुनने के बाद स्त्रियां पानी पी सकती हैं, जबकि अनेकों जगहों पर जब तक चंद्र दर्शन न हो जाये, तब तक कुछ भी खाया-पिया नही जाता है।
  • कथा सनने के बाद एक बाजोट पर पीली मिट्टी से मां गौरी और गणेश जी का स्‍वरूप बनाइये। मां गौरी की गोद में गणेश जी का स्‍वरूप बिठाइये। इन स्‍वरूपों की संध्‍याकाल के समय पूजा होती है।
  • जब रात्री को चंद्रमा निकल आये तब चंद्रमा को अर्घ्य देवें व ‘ॐ शिवायै नमः’ से पार्वती का, ‘ॐ नमः शिवाय’ से शिव का, ‘ॐ षण्मुखाय नमः’ से स्वामी कार्तिकेय का, ‘ॐ गणेशाय नमः’ से गणेश का तथा ‘ॐ सोमाय नमः’ से चंद्रमा का पूजन करें तथा छननी के प्रयोग से चंद्र दर्शन करें। चंद्रदर्शन के बाद अपने से बडों यानी सासु, ससुर, जेठ, जेठानियां, पति व अन्‍य बडे-बुजुर्गों के चरण स्‍पर्श कर आशीर्वाद प्राप्‍त करें।
  • फिर यदि सम्‍भव हो तो शक्‍कर का करवा लें और उसमें चावल भरें जबकि यदि शक्‍कर का करवा उपलब्‍ध न हो, तो मिट्टी का करवा लेकर उसमें में शक्‍कर व चावल का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें। रोली से करवे पर स्‍वास्तिक बनाएं। गौरी गणेश के स्‍वरूपों की पूजा करें व कम से कम 108 बार इस मंत्र का जाप करें –
  • ‘नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्‌। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥‘
  • फिर करवों का आपस में आदान-प्रदान किया जाता है, जो आपसी प्रेम-भाव को बढ़ाता है। यहां इस बात का ध्‍यान रखना जरूरी होता है कि एक दूसरे के करवें किसी भी स्थिति में न टकराऐं। यदि ऐसा होता है, तो उस वर्ष पति के साथ कोई न कोई बडी दुर्घटना जरूर घटित होती है। इसलिए करवों का टकराना एक प्रकार का अपशकुन माना जाता है। अत: किसी भी स्थिति में करवों का आदान-प्रदान करते समय वे आपस में टकराने नहीं चाहिए।
  • ये पर्व पति की लम्‍बी उम्र के लिए किया जाता है, लेकिन पति का जन्‍म जिस माँ से हुअा है, पत्नियां उस माँ यानी अपनी सास का इन करवों के साथ मिठाईयां, फल व तरह-तरह की भेंट सामग्री प्रदान कर सम्‍मान करती हैं तथा करवा चौथ के इस व्रत का समापन करती हैं। यानी सास द्वारा दी गई सरगी से जिस व्रत की शुरूआत होती है, उसी सास को भेंट देकर इस व्रत का समापन किया जाता है।
  • अन्‍त में पूजा समापन के बाद बडों को भाेजन कराने के बाद अन्‍त में स्‍वयं भोजन ग्रहण कर व्रत काे पूर्ण किया जाता है।


करवा चौथ की बधाई फोटो 











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